ब्राज़ील में दंगे चल रहे थे, पाँच 5 दिन से शहर नहीं खुला था, चारो तरफ त्राहि-त्राहि मची थी। यहां तक की दूध, सब्जी, फल भी शहर में नहीं मिल रहे थे। वहीं पर गरीब बच्चों का एक हॉस्टल था जिसकी मेस पिछले 5 दिनों से बंद थी। बच्चे भूख से बिलबिला रहे थे। एक बच्चे से रहा नहीं गया, वो परेशान हो कर सड़क पर निकल आया। उसको डर था कि पुलिस उसे मारेगी, लेकिन कभी-कभी भूख से मरने से बेहतर है सड़क पर मार खाना, इसी लिए वो निकल पड़ा।
जब वो थोड़ा आगे पहुंचा तो उसने एक घर की बाल्कनी पर एक युवती को कुछ खाते हुए देखा। बच्चा उसे टकटकी लगाए देखने लगा। उस युवती को बड़ा अजीब लगा।
उसने बच्चे से पूछा, “भूख लग रही है?” बच्चे ने कहा, “तीन दिन से कुछ नहीं खाया।“ उस युवती ने बच्चे को घर के अंदर बुलाया, बिठाया और उसे खाने को दिया। बच्चे ने कहा कि वो खा नहीं पाएगा तो युवती ने उसे एक ग्लास दूध और दो ब्रेड दे दी। तीन दिन से भूखे उस बच्चे की जान में जान आई। वो युवती को बार बार थैंक यू बोलता हुआ निकल गया। जाते-जाते वो दरवाज़े के बाहर रुककर नेम प्लेट की ओर टकटकी लगाकर देखने लगा। फिर वहां से चला गया।
बहुत साल बीत गए, वो युवती वृद्ध हो चुकी थी। एक दिन सड़क दुर्घटना में वह गंभीर रूप से घायल हो गई। लोगों बेहोशी में उठाकर पास ही केविन सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में पहुंचा दिया और वहां उसका इलाज शुरू हुआ। कुछ दिन बाद उसे होश आया और तब उसे पता चला कि वो अस्पताल में है। वो यह सोचकर बेचैन होने लगी कि अस्पताल के बिल का भुगतान वो कैसे करेगी। उसका इन्शुरेन्स भी इतना नहीं था कि अपस्ताल के बिल की भरपाई हो पाए। वो हर दिन धुकधुकी के साथ जी रही थी कि जब बिल सामने आएगा तब वो क्या करेगी लेकिन उसके पास बिल नहीं आ रहा था।
डिस्चार्ज के दिन वो सबसे ज़्यादा घबराई हुई थी। उसे लग रहा था कि ऐसा बिल आएगा जिससे उसके जीवन भर की जमा पूंजी ख़त्म हो जाएगी या फिर कर्ज़ लेने की भी नौबत आ सकती है। बिल आने पर महिला की आँखों से आँसू बहने लगे। उसमें लिखा था, “बिल फुल्ली क्लीयर्ड, वन ग्लास ऑफ मिल्क अँड 2 स्लाइसेस ऑफ ब्रेड, थैंक यू।“ उसे कुछ समझ नहीं आया, पूछे जाने पर नर्स ने बताया कि ये इस हॉस्पिटल के मालिक डॉ. केल्विन ने कहा है कि आपके बिल का भुगतान हो गया है। उस महिला को कुछ समझ नहीं आया।
वो डॉ. केल्विन से मिलने चली गई और उनसे कृपा का कारण पूछा। डॉ. केल्विन ने कहा, “ आपको शायद याद नहीं होगा. बहुत साल पहले जब दंगे चल रहे थे, तब मै बहुत छोटा था। उस समय मुझे लगा था कि मै भूख से मर जाऊंगा, कहीं कोई मदद करने को तैयार नहीं था। तब आपने अपने घर का दरवाजा खोला था और मुझे एक ग्लास दूध और ब्रेड दी थी। वो कर्ज़ था मेरी ज़िंदगी में। मै ये सोचता रहता था कि मै आपका कर्ज़ कैसे चुकाऊँ और देखिये भगवान ने खुद मुझे मौका दे दिया। आप जैसे लोगों की वजह से ही ये दुनिया जीने लायक है. एक छोटी सी मदद इतना बड़ा पुरस्कार बन सकती है, ये उस महिला की कल्पना से परे था।
साथियों, छोटी या बड़ी, यदि हम में जरा भी सामर्थ्य है तो हमें दूसरों की मदद करनी चाहिए। जो हम दूसरों की मदद करते है, वो कई गुणा लौटकर हमारे पास वापस आती है।
जब आप दूसरों को देने के लिए अपनी जेब खोलते हैं तो ऊपरवाला आपको देने के लिए अपना दिल खोलता है। आज से ही शुरू कीजिये, भले ही मदद छोटी हो या बड़ी, वो महत्व नहीं रखता बल्कि उस मदद को करने की आपकी सोच महत्व रखती है।
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