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Writer's pictureDr. Ujjwal Patni

तीन सबसे बड़े भय को जीतिए !


हम सब पंखों के साथ पैदा हुये हैं लेकिन अपने अपने भय की वजह से हम सब जीवन में घिसटने का निर्णय लेते हैं।


भय स्वाभाविक है लेकिन उसकी वजह से रुक जाना या सपनों को मार देना गलत है. बड़े कलाकारों को बड़े परफ़ोर्मेंस के पहले, बड़े खिलाड़ियों को महत्वपूर्ण मुकाबलों के पहले और मेरे जैसे स्पीकर को भी बड़ा कार्यक्रम देने के पहले भय होता है। लेकिन सब एचीवर अपने भय को हराकर विजय पाते है इसलिए अपने भय को पहचानकर उससे जीतिए।


1. शुरुआत और पहले कदम का भय:

हमारे मन में यूं तो बहुत सारे सपने है लेकिन पहला कदम लेने में घबराहट होती है. शुरुआत के भय को हटाने का इलाज ही पहला कदम है। लक्ष्य को तय करके पहला कदम बढ़ा दें। लेखक बनना चाहते हैं तो एक अध्याय का शीर्षक तय करें और लिखना शुरू कर दें। हो सकता है कि दो तीन दिन आपसे अच्छे शब्द ना निकले लेकिन कुछ समय बाद आप अच्छा लिखने लगेंगे। यदि आप सोचेंगे कि पहली बार में ही अच्छा लिख लूँ तो किसी भी लेखक के साथ ऐसा नहीं होगा। विश्वविजेता तैराक भी जब पहली बार पानी में उतरा तो वो भी छटपटाया था। पहला कदम कभी भी गुणवत्ता में उत्कृष्ट नहीं होगा लेकिन आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए वो संजीवनी बूटी का काम करेगा। बैठकर सोचते रहने से अच्छा शुरू कर देना है।




2. खुद के हीन व कमजोर होने का भय:

मुझमें टैलंट नहीं है, मुझसे शायद नहीं होगा, ऐसे आत्मघाती वाक्य हमारे अंदर रहते हैं, अधिकांश लोग इन आत्मघाती वाक्यों को बाहरी दुनिया से शेयर नहीं करते और किसी और सुनना भी नहीं चाहते. लेकिन यह तो सोचिए कि यह हीन विचार बिना पूरे प्रयास के आपके दिमाग में कैसे आये। क्या सचिन तेंदुलकर या अब्दुल कलाम जी को पता था कि मैं एक दिन बड़ा काम करूंगा. पता किसी को नहीं था बस खुद पर भरोसा था. यदि आप खुद पर भरोसा नहीं करेंगे तो दुनिया आप पर भरोसा नहीं करेगी। जो कमजोर कहानियाँ आप खुद को सुनाते हैं उन पर पर धीरे धीरे आपका दिमाग विश्वास करने लगता है।


आज से पोसिटिव सेल्फ टॉक शुरू कीजिये। अकेले में खुद से कहिए कि मैं कुछ बड़ा करने के लिए आया हूँ। मैं जो भी काम करूंगा वो पूरा करके ही दम लूँगा। मैं जब किसी मंजिल को पाने के लिए निकलता हूँ तो पाकर ही लौटता हूँ। अपने अवचेतन मस्तिष्क को वो सेल्फ टॉक बार बार सुनाइए. ताकि वो कहानियाँ उसके अंदर दर्ज हों. यदि कमजोर कहानियों की वजह से शुरू ही नहीं किया तो सफलता का 1 प्रतिशत मौका भी आपने खो दिया।



3. लोगों द्वारा मूल्यांकन किए जाने का भय:

क्या कहेंगे लोग, यह सबसे बड़ा मानसिक रोग। मैं अक्सर अपने सेमीनारों में कहता हूँ कि लोग गिरगिट होते हैं और रंग बदलते हैं। जब आप असफल होंगे तो वो कहेंगे हम तो जानते थे क्योंकि आपमें दम वाली बात नहीं थी और पूरी मेहनत नहीं की। जब सफल हो जाएंगे तो वही लोग अपनी राय बदल लेंगे और कहेंगे कि हम तो पहले से जानते थे कि ये सफल ही होगा।जब मैंने बिजनेसजीतो डॉट कॉम शुरू किया उस वक़्त बहुत से लोगों ने कहा कि इंडिया में अभी ऑनलाइन कोर्सेस का वक़्त नहीं आया है। मेरे मन में भी भय आया परन्तु फिर दुनिया के दूसरे बड़े लोगों का सोचा जिन पर भी कोई ना कोई हँसा था। सिर्फ उस एक विश्वास पर अपना काम जारी रखा और भरे लॉकडाउन के बीच 17 अप्रेल को हमें उसे लॉंच करने में सफलता मिली क्योंकि भय के आगे जीत है। भयभीत होना बुरा नहीं है, भयभीत होकर रुक जाना बुरा है।


लोग परिणाम के पीछे चलते है। लोगों को उत्तर देने का सबसे अच्छा तरीका है सफल होना और मंज़िलों को हासिल करना। अधिकांश लोगों के पास अपने लक्ष्य नहीं होते इसीलिए वे अपना अधिकतम समय दूसरों की गॉसिप और मूल्यांकन में बितातें हैं। यदि आप भी लोगों के मूल्यांकन की वजह से रुकें हैं तो मेरी आपको सलाह है कि अच्छी पुस्तकें पढ़ना शुरू कीजिये, अच्छे कोर्सेस में हिस्सा लेना शुरू कीजिए और अपने आसपास कुछ शानदार दोस्त बनाइए जिनके सपने बड़े हो। ऐसे लोगों से सलाह करना बंद कीजिये. साथियों, इन तीन भय को आपको भी हराना है। हो सकता है कि ऊपर वाले ने आपको कोई बहुत बड़ी मंज़िल हासिल करने के लिए भेजा है, हो सकता है कि आपके अंदर कोई ऐसी प्रतिभा हो जो आजतक बाहर नहीं आई है, हो सकता है कि आप कुछ ऐसा कर जाए कि देश और समाज आपको याद करे और आपकी तरह बनना चाहे। यदि आप प्रयास ही नहीं करेंगे तो इनमें से कोई भी संभावना कभी भी सच नहीं हो पाएगी।

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